Sunday, August 30, 2009

BTN: BTN : BJP and it's Vibhshan


भाजपा के भेदिये
 
वीरेन्द्र जैन
भाजपा के बारे में उसके शिखर के नेताओं में से जसवंत सिन्हा, यशवंत सिंह, सुधीन्द्र कुलकुर्णी, अरूण शौरी, भुवन चन्द्र खण्डूरी, राजनाथ सिंह सूर्य, भैरों सिंह शेखावत, बृजेश मिश्र, आदि के खुलासों/बयानों में ऐसा कुछ भी नया नहीं है जिसे देश के लोग पहले से नहीं जानते हों किंतु इसमें नया यह है कि पहले उनके विरोधी ये आरोप लगाते थे और वे इन्हें विरोध के लिए विरोध बतला कर अपने लोगों को बरगला लेते थे पर अब सारी ही सच्चाइयां उन आरोपों में सम्मिलित उसी गिरोह के लोग बतला, जनता के सामने वादा माफ गवाह बन कर पुष्टि कर रहे हैं।
अब ये आरोप, आरोप नहीं हैं अपितु स्वीकरोक्तियां हैं। ऐसा नहीं है कि अन्दर के लोगों ने बाहर निकल कर इससे पहले सच्चाइयां न बतलायी हों किंतु उनके बतलाने का जो समय रहा विादास्पद रहा है इसलिए उसे उनकी खीझ बता कर उनकी उपेक्षा कर दी गयी थी, अन्यथा श्री बलराज मधोक तो पार्टी के अध्यक्ष और मदनलाल खुराना और कल्याण सिंह जैसे लोग तो भाजपा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रह चुके थे और संघ के अप्रिय भी नहीं रहे। उमा भारती तो न केवल उनके मंदिर अभियान का आक्रामक चेहरा ही रहीं थीं अपितु अपनी वाचालता में अपने महिला व साध्वी चोले की ओट में बेलगाम अभिव्यक्ति की दम पर भाजपा के अग्रिम दस्ते में रही थीं जिन्हें केन्द्र में मंत्री पद ही नहीं दिया गया था अपितु मध्यप्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री पद से नवाजा गया था। गोबिन्दाचार्य तो कभी भाजपा के थिंक टैंक कहे जाते थे। छोटे मोटे सांसद और विधायक तो आते जाते ही रहते हैं तथा सबसे अधिक संख्या में दलबदल से जुड़ी पार्टियों में भाजपा सबसे आगे रही है।
साहित्य में भी आजकल आपबीती या आत्मकथाओं का दौर चल रहा है और वे ही रचनाएं सर्वाधिक लिखी व स्वीकार की जा रही हैं जो आत्मकथात्मक हैं व जिनमें आत्मस्वीकृतियां रही हैं। भाजपा के लोग भी इन्हीं आत्म स्वीकृतियों की दम पर पिछले कई दिनों से अखबारों में छाये रहे हैं और स्वाइन फ्लू जैसे संक्रामक रोग के समाचारों का स्थान लेते रहे हैं। चूंकि भाजपा का फैलाव किसी न किसी षड़यंत्र या दुष्प्रचार पर आधारित रहा है इसलिए इन स्वीकरोक्तियों के बाणों से उस गुब्बारे की हवा का निकलना स्वाभाविक है। पिछले दिनों के बयानों से जो बातें सामने आयी हैं उनमें प्रमुख हैं-
• लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट सोंपे जाने के बाद उमाभारती का यह कहना कि भाजपा के लोगों को छह दिसम्बर 92 को बाबरी मस्जिद तोड़ने के आरोपों को स्वीकार कर लेना चाहिये। स्मरणीय है कि लिब्राहन आयोग को बयान देते समय सुश्री उमाभारती ने कहा था कि उन्हें कुछ याद नहीं कि उस दिन क्या हुआ था।
• जसवंतसिंह के इस बयान से कि कंधार में आतंकवादियों को छोड़े जाने की पूरी जानकारी लालकृष्ण आडवाणी को थी आडवाणी का असली चेहरा सामने आ गया है जो उनके नकली लौहपुरूष होने के साथ साथ दूसरों पर आतंकवादियों से नरमी बरतने के गैर जिम्मेवाराना बयान की भी पुष्टि करता है।
• गुजरात में अल्पसंख्यकों के सरकारी प्रोत्साहन में हुये नृशंस हत्याकांड में अटल बिहारी बाजपेयी और आडवाणी के असली चेहरे सामने आ गये हैं। इससे न केवल इस बात की ही पुष्टि हो गयी है कि अपने जिन्ना सम्बंधी विवादास्पद बयान के बाबजूद भाजपा के प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी तक पहुँच जाने वाले आडवाणी भी मोदी के साथ समान रूप से दोषी हैं। दूसरे उस दौरान अटल बिहारी बाजपेयी के बार बार दिये उन बयानों की भी सच्चाई उजागर हो गयी है, जिसे वे पत्रकारों द्वारा पूछने पर कहा करते थे कि भाजपा नेतृत्व में कोई मतभेद नहीं चल रहा।
• भले ही अरूण शौरी के बयान के बाद आरआरएस प्रमुख ने उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया हो पर उससे यह तो स्पष्ट हो गया कि भाजपा आरएसएस के ही संरक्षण और निर्देशों में चलती रही है अन्यथा अपनी कार्यकारिणी में पूरा बहुमत रखने वाले लालकृष्ण आडवाणी को जिन्ना के बयान के बाद स्तीफा क्यों देना पड़ता! इससे भाजपा के प्रत्येक स्तर के संगठन सचिव के पदों पर संघ के लोगों को फिट करने वाले संघ का असत्य भी प्रकट होता है।

दरअसल ये सत्य तो संख्या में बेहद मामूली से सत्य हैं पर जैसे जैसे लोगों में आत्मग्लानि बढेगी वैसे वैसे ही इस बात की बहुत संभावनाएं हैं कि भाजपा का लाक्षागृह ढह जाये जिसे ढहाने के लिए अरूणशौरी आरएसएस से आग्रह कर चुके हैं। गोबिन्दाचार्य जैसे भाजपा के भूतपूर्व थिंकटैंक गोबिन्दाचार्य भी कह रहे हैं कि जैसे आवशयकता पड़ने पर पहले भी जनसंघ का रूप बदल कर वे जनता पार्टी का हिस्सा बनने व बाद में भाजपा के रूप में प्रकट होने का काम कर चुके हैं वैसे ही अब भी संघ परिवार के इस राजनीतिक मुखौटे को अपना पुराना मुखौटा बदल कर नया कर लेना चाहिये। सच है कि दीवालिया हो जाने के बाद फर्में अपने नये नाम के रजिस्ट्रेशन के साथ प्रकट होती हैं जिससे उनके पुराने कर्जे भुला दिये जाते हैं।
रोचक यह है कि जो लोग भाजपा के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े रहे वे भी अब उससे कन्नी काट रहे हैं जो कभी उसके अंध समर्थक रहे थे तथा दूसरी ओर भी आरएसएस भी पदाधिकारियों के मुखौटे बदल कर भाजपा के बारे में पुन: नया भ्रम बनाने की जुगाड़ में है जो वसुंधरा राजे, भगतसिंह कोशियारी, के समर्थकों समेत बिहार के असंतुष्ट बहुमत विधायकों को भी समेट कर रख सके। अगर केन्द्र सरकार राजनीतिक भ्रष्टाचार से एकत्रित धन को सचमुच ही बाहर निकालने के प्रयास करेगी जैसा कि प्रधानमंत्री ने आग्रह किया है तो भाजपा का धरातल ही खिसक जायेगा।
वीरेन्द्र जैन


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BTN: Jinna and Jaswant Singh


इतने भोले भी नहीं हैं जसवंत सिंह
वीरेन्द्र जैन
कूटनीति ऐसी दो सिरे वाली तलवार होती है जो यदि सामने वाले के लिए घातक नहीं हो पाती तो खुद को ही नुकसान पहुँचाती है। जो राजनीतिक संगठन लोकतांत्रिक राजनीति में पारदर्शिता की जगह कूटिनीतिक तरीकीबें करते हैं उनके साथ ऐसा खतरा हमेशा ही बना रहता है।
भाजपा में जसवंत सिंह का जिन्ना प्रसंग ऐसा ही है। सामंत परिवार में जन्मे, पूर्व सेना अधिकारी रहे, व देश में प्रधानमंत्री के बाद सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय वित्त, विदेश, व रक्षा को सम्हालते रहने वाले जसवंत सिंह संघ की भाजपा में रहते हुये व आडवाणी का हश्र देखने के बाद जिन्ना की प्रशांसा में पुस्तक लिखने का परिणाम न जानते हों ऐसा नहीं माना जा सकता। एक तो वे ठीक तरह से जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं दूसरे उनका निशाना नेहरू और पटेल नहीं आडवाणी हैं व उन्होंने किताब के बहाने एकलव्य की तरह ऐसे तीर छोड़े हैं जिससे भाजपा के वाचालतम प्रवक्ताओं तक की बोलती बन्द हो गयी है।
जनसंघ की दूसरी अवतार भाजपा का इतिहास प्रारंभ से ही जोड़ तोड़ व दुरभिसंधियों से भरा हुआ है। अपने साम्राज्य के हित में देश में अंग्रेजों द्वारा पनपाये गये साम्प्रदायिकता के बीजों से जीवन पाकर जो हिन्दू पक्ष विकसित हुआ था वह आरएसएस था तथा जो मुस्लिम पक्ष विकसित हुआ था वह मुस्लिम लीग के नाम से जाना गया। दोनों ने ही आजादी की लड़ाई में कोई सहयोग तो नहीं दिया किंतु साम्प्रदायिक दंगों के द्वारा समाज को बांटने के प्रयासों में अंग्रेजों की हैसियत को ही मजबूत करते रहे। आजादी के समय हुये साम्प्रदायिक दंगों और देश के बंटवारे से शेष बचे देश के हिन्दुओं के एक हिस्से और पाकिस्तान में अपना वतन छोड़ कर आये हिन्दू शरणार्थियों में एक पराजय का भाव पैदा हुआ जो उन्हें साम्प्रदायिक बना गया व भारत में रह गये मुसलमानों में एक ऐसा अपराधभाव पैदा हुआ कि उनमें से एक वर्ग रक्षात्मक रूप से साम्प्रदायिक हो गया। उनके बीच की यह दूरी नयी लोकतांत्रिक व्यवस्था, जो अपनी बाल्यावस्था में थी, में जन्मे राजनीतिक दलों को बहका गयी। संघ ने जनसंघ बना कर हिन्दुओं के बीच अपनी चुनावी राजनीति की शाखा डाल ली तो मुसलमानों के वोट हस्तगत करने के लिए काँग्रेस ने स्वयं को अपने अनेक सदस्यों के चरित्र व व्यवहार से अलग धर्मनिरपेक्ष घोषित और प्रचारित करने में लाभ देखा। जहाँ हिन्दुओं में साम्प्रदायिकता से प्रभावित वोट जनसंघ को मिले वहीं मुस्लिम साम्प्रदायिक वोटरों ने रणनीतिक दृष्टि से काँग्रेस की सरकार बनाने में अपनी अधिक सुरक्षा देखी। परिणाम यह हुआ कि बिना काम के थोकबंद वोट मिलते रहने से इस ध्रुवीकरण ने इन राजनैतिक दलों में राजनीतिक कार्यक्रमों को पीछे कर दिया। इससे जनता के बीच सीधे जाने की जरूरतें कम होने लगीं। काँग्रेस के पास स्वतंत्रता संग्राम की विरासत के साथ साथ दलित वोट भी थे इसलिए प्रारंभ में सत्ता उसके ही पास रही।
हमारे देश के लोग स्वभाव से साम्प्रदायिक नहीं हैं इसलिए जनसंघ व मुस्लिम लीग के वोट हमेशा ही कम रहे। जनसंघ को दूसरे हथकण्डे अपनाने पर ही सत्ता का स्वाद चखने के अवसर मिल सके। सत्ता पर अधिकार जमाने की वासना से भरा जनसंघ वह दल रहा जो आजादी के बाद बनने वाली प्रत्येक संविद सरकार में सम्मिलित होने के लिए उतावला रहा। संविद सरकारों का गठन मुख्य रूप से काँग्रेस छोड़ कर आये लोगों, विभिन्न तरह के समाजवादियों ही नहीं अपितु भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी आदि के साथ हुआ किंतु अपने आप को सैद्धांतिक कहने वाली पार्टी के लिए सत्ता के वास्ते कोई अछूत नहीं रहा। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर तो उसने अपनी जनसंघ पार्टी का विलय करना भी मंजूर कर लिया। पर अन्दर अन्दर वे संघ के आज्ञाकारी बने रहे जिसकी पहचान होने पर ही जनता पार्टी का विभाजन हुआ और केन्द्र में पहली गैर कांग्रेस सरकार का पतन हुआ। वे जैसे जनता पार्टी में उतरे थे लगभग वैसे ही समूचे वापिस आ गये। वैसे भी उन्होंने जनसंघ के संसाधनों का विलय नहीं किया था इसलिए वे फिर से अपने नये नाम भारतीय जनता पार्टी के रूप में प्रकट हो गये। यह नाम उनको इसलिए भी पसंद आया था ताकि वे जनता पार्टी की लोकप्रियता का लाभ ले सकें। बाद में इस पार्टी ने सत्ता पाने के लिए हर तरह के हथकण्डों को अपनाने में गुरेज नहीं किया। दूसरी पार्टियों में स्वार्थ पूरा न हो पाने पर निकाले गये प्रभावशील नेताओं, प्रिवीपर्स व विशोषाधिकार बन्द पूर्व राजे महाराजों का इन्होंने आगे बढ कर स्वागत किया, प्रत्येक लोकप्रिय व्यक्तित्व के साथ सौदा करके अपने साथ जोड़ने में कोई देर नहीं की व राजनीतिक महात्वाकांक्षा रखने वाले सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारियों, सेना अधिकारियों से अपने दल को सुसज्जित किया। प्रत्येक भावनात्मक घटना का राजनीतिक लाभ उठाने में उन्होंने देर नहीं की भले ही वैसा करना देश और जनता के खिलाफ जाता हो।
पर जो विचार सिद्धांत व कार्यक्रम से बंधा नहीं होता है या उसे लगता है कि संगठन में वैसा काम तो नहीं हो रहा जैसा कि दावा किया जाता है, या जिससे आकर्षित होकर वह आया था तो वह अपनी सेवा की कीमत चाहने लगता है। वे उमाभारती हों, वसुंधरा राजे हों, कल्याण सिंह हों, भुवनचन्द्र खण्डूरी हों, बाबूलाल मराण्डी हों, यशवंतसिन्हा हों, सिद्धू होंं, धर्मेंद्र हों या जसवंत सिंह हों। अपने लाभ के लिए किसी के स्तेमाल की कोई सीमा होती है और जब साफ दिखायी दे रहा हो कि हम ना तो राष्ट्र के लिए बलिदान दे रहे हैं और ना ही सिद्धांतों के लिए तब कोई प्रमोद महाजनों अरूण जेटलियों, और आडवाणियों को कब तक ढोयेगा!
सन 2001 में श्रेष्ठ सांसद के रूप में सम्मानित जसवंत सिंह ने केन्द्र सरकार के सभी प्रमुख मंत्रालयों का संचालन अपनी पूरी योग्यता व क्षमता से किया था। भाजपा के विरोधी दलों में भी यदि किसी भाजपा नेता का सर्वाधिक सम्मान था तो वह जसवंत सिंह का ही था व सबसे कम आलोचना उन्हीं की थी। जब भाजपा लोकसभा में कुल दो सदस्यों तक ही सिमिट कर रह गयी थी तब उसके उन दो सदस्यों में से एक जसवंत सिंह थे जिन्होंने भाजपा संसदीय दल के नेता के रूप में उसके पक्ष को लगातार संसद में रखा था। भाजपा के 'घोषित सिद्धांतों' के हिसाब से वे आडवाणी के उत्तराधिकारी के रूप में सबसे आगे थे किंतु आरएसएस की पृष्ठभूमि न होने के कारण संघ के नेता उन्हें इतना आगे नहीं जाने देना चाहते थे। जब ऐसा लगने लगा कि आडवाणी के बाद सबसे आगे जसवंत सिंह होंगे तब उनके पर कतरने की तैयारियां प्रारंभ हो गयी थीं। राजस्थान में वसुंधरा राजे ने उन जैसे कद के नेता की उपेक्षा करना व उन्हें अपमानित करना प्रारंभ कर दिया था जो बिना संघ और आडवाणी की मर्जी के संभव नहीं था। इसी द्वंद में उन्होंने अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल के दौरान उनके कार्यालय में एक अमरीकी एजेन्ट होने की बात को उजागर कर दिया था जिससे पूरी भाजपा भीतर से हिल गयी थी। उस बात को बाद में दबा दिया गया था किंतु यह भी सच है कि अमरीका के साथ परमाणु करार के मामले पर आये अविश्वास प्रस्ताव पर दल बदल करने वाले इसी राष्ट्रभक्ति का ढिंढोरा पीटने वाली पार्टी के सांसद सर्वाधिक थे। बाद में जसवंत सिंह को अपना चुनाव क्षेत्र छोड़ कर बंगाल में उस जगह चुनाव लड़ने भेज दिया जहाँ से भाजपा की जीत की संभावनाएं न्यूनतम थीं। किंतु संयोगवश गोरखा नैशनल फ्रन्ट वालों से समझौता हो जाने के कारण वे वहाँ से भी जीत गये। जब लोकसभा में आडवाणीजी ने विपक्ष का नेता पद स्वीकार करने में ना नुकर की तब उन्हें जसवंत सिंह के नेता बन जाने की संभावना का डर दिखा कर ही दुबारा से नेता बना दिया गया व उपनेता की जिम्मेवारी भी उन्हें न देकर सुषमा स्वराज को दी गयी। यही वह समय था जब उन्होंने हार की जिम्मेवारी तय करने का मसला उछाला जिससे हड़बोंग मच गया।
दर असल जसवंत सिंह समझ चुके थे कि अब उन्हें किसी न किसी बहाने से दिन प्रति दिन गिराया जायेगा और भाजपा की संस्कृति व उसके इतिहास के अनुसार किसी भी तरह के नैतिक अनैतिक हमले किये जायेंगे। इस पूर्व सैन्य अधिकारी ने पूरी सोच समझ के साथ दुश्मन के हमले से पहले हमला कर देना ठीक समझा। उन्होंने भाजपा की बहुत ही कमजोर नस पर हाथ रख दिया। अपने साम्प्रदायिकता से प्रभावित समर्थन को बनाये रखने के लिए ही आडवाणीी के जिन्ना सम्बंधी बयान पर संघ और विश्व हिंदू परिषद आदि ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी और आडवाणी को "बिहार चुनाव के बाद" अध्यक्ष पद छोड़ने को विवश कर दिया था किंतु अडवाणी के विकल्प पर कोई खतरा न लेने के वास्ते उन्हें विपक्ष का नेता बना रहने दिया था। वहीं लोगों की स्मृति लोप होने के बाद उन्हें प्रधानमंत्री पद प्रत्याशी चुनवा दिया गया जबकि अडवाणी ने ना तो कभी सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया कि जिन्ना के बारे में दिये अपने बयान के मामले में वे गलत थे और ना ही कोई क्षमा याचना ही की। जसवंतसिंह, जो समझ चुके थे कि भाजपा में अब उनके दिन लद गये हैं, ने इसी विसंगति का लाभ लेने में भलाई समझी ताकि वे उन्हें आइना दिखा सकें। भाजपा ने इससे पहले दो समझदारियां कीं, एक तो वसुंधराराजे को राजस्थान में विपक्ष के नेता पद से हटा कर वहां संतुलन बनाने का और दूसरे गोबिन्दाचार्य को बुला कर एक घन्टे तक उनसे विर्मश करके उमा भारती को मनाने का जिससे अगली 25 सितम्बर को उनकी बची खुची पार्टी के भाजपा में वापिस मिला लेने की संभावनाएं बन गयीं हैं। अब उमा भारती ने लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट पर सच्ची प्रतिक्रिया देने के प्रति अपना मुँह सिल लिया है।
किसी को पता नहीं छलनी के कितने छेदों को बन्द कर पाने में वे कब तक सफल हो सकेंगे, पर सच तो यह है कि इनके वोटरों को छोड़ कर कोई भी सीधा और सरल नहीं है।

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Tuesday, August 25, 2009

New Gaya-Bangkok daily flight from Jet Airways

A good news from airt connectivity to Bihar and tourism point of view. Jet airways is going to start Gaya to Bankok daily international flight via Varanasi starting from 6th Oct.

Gaya/Varanasi- Bangkok
Fly from Gaya and Varanasi to Bangkok, starting October 6, 2009.

Flight schedule
9W 70 Varanasi-Bangkok DEP: 1400 hrs. ARR: 1845 hrs.
9W 69 Bangkok-Gaya DEP: 0845 hrs. ARR: 1015 hrs.
9W 69 Gaya-Varanasi DEP: 1145 hrs. ARR: 1230 hrs.

JetPrivilege earning and redemption miles
> Base JPMiles: Gaya-Bangkok - 1273 JPMiles; Varanasi-Bangkok - 1409 JPMiles
> Regular redemption JPMiles (one-way, adult JPMiles): 15000 in Economy and 30000 in Premiere.

Ranchi_patna Road (National Highway-33) on the mercy of coal mafia

A vast portion of National Highway-33 in eastern India connecting Ranchi with Patna, the capitals of two neighbouring states of Jharkhand and Bihar respectively, caved-in near a place named Kuju in Ramgarh district of Jharkhand on 10 August 2009.

This caving in of the highway has been attributed to a fire that has been raging from the underground coal mines in the vicinity since early morning hours of Sunday (August 10). This happened on the stretch between Loha Gate and Kuju where instances of fire from unused or closed mines are believed to be frequent.

Reportedly, the area is rich in coalfields and was once under mining by Central Coal Fields Limited (CCI). Later, it was left abandoned, where some villagers did illegal mining and left the coal reserve exposed within the earth, which caught fire when the black diamond came in contact with air.

Consequent to the raging fire, the district administration and police officials have stopped all kind of vehicular traffic on the highway. "Early morning at four, a portion of National Highway-33 got caved in. We have blocked the highway so that nobody can inadvertently enter here. The district administration and police officials have cordoned off the area with red cord barring any traffic inflow," said B K Singh, General Manager, Central Coal Fields Limited (CCL).

The underground mine fire was so intense that it created a deep crater on the highway disrupting the traffic and causing panic among the people residing in the nearby villages. Now, the families from these villages have been asked to vacate their homes and move on to some safer place until the fire is completely doused off.

There are around 52 homes in the surrounding villages. "The situation is really worse. We are residing in this village for the past 30-40 years. CCI (Central Coal Fields Limited) was looking after it but they are unable to do anything. Even government can't do anything. We have been given two days to vacate the village," said Santosh Kumar, a resident of a village near Kuju.

The coal mine fire has spread to the entire underground area and the solid coal base within the earth has got reduced to ashes and now slowly cracks have started appearing on the surface of the earth.

ANI

The devastating mine-fire under National Highway-33 connecting Patna with Ranchi near Kuju in Jharkhand has increased the distance between the two capitals. Reports said that the crater formed on the Ranchi-Patna Highway further widened on Tuesday.

Another crater has appeared near the old one near Loha Gate in Kuju in Ramgarh district. The diameter of crater has increased from 15 to 20 feet. The other crater is 30 metre from the Highway and is smaller in size. It is feared that more crater would come up if the fire is not brought under control soon.

Now the routes taken by the vehicles are quite circuitous. They have to go through either Bokaro or Ghato. The smaller vehicles are, however, still going through the old route via a newly built diversion along side the subsided Highway stretch. Nobody can guess how long will it take for the normalization of traffic.

The underground fire is now taking calamitous proportion. It is now an uphill task for the Coal India Limited. Local people said that had the warning signals been timely addressed the situation would not have worsened to such an extent. “We are using chemicals, foams and water to control the intensity of underground fire. Once this is done we will have to go in for open cast mining to extinguish the fire completely, and take out coal and the area will be refilled with earth,” said CIL Chairman-cum- Managing Director, Rajan Kumar Saha. He said that it would take at least three months to construct a diversion near Kuju. It will be done under the CCL community development porgramme. The diversion would be builtd by the National Highway Authority of India and the CCL would provide the money. Saha attributed the devastating underground fire to miscreants involved in illegal mining.

Coal is highly combustible and when it comes in contact with oxygen it forms carbon di oxide and carbon-monoxide besides generating a lot of heat. When the heat does not dissipate it accumulates and comes out in flames. He denies that warning signals in the form of smoke billowing out from the mine were not taken seriously. He said that the CCL had abandoned that mine. The smoke started coming out of the ground only just a few days ago and the CIL took immediate action, he claimed.

The district administration as well as the local people, on the other hand, claims that the smoke had been coming out from the mines for the last several months.

Nitish Kumar Jee as ET Business Reformer of the year 2009

It is great to acknowledge Nitish Kumar Jee as ET Business Reformer of the year 2009. Many of the website includes the detail about his accomplishments.


http://m.economicti mes.com/PDAET/ articleshow/ 4931000.cms


People from Bihar have proved themselve hero in various fields. Unfortunately the political enviornment was not conductive enough to facelift the outlook of the bihar. This exlcusive jury decision should bring lots of confidence in the Investors, General people and Govt representative.

Once again congratulations to Nitish Kumar jee.

Saturday, August 22, 2009

BTN: Quality Higher Education Prepares the Next Generation Experts

As we live in a connected world, it is essential that institutions
offering higher education provide students with experience, as well as
prepare them to operate in the global marketplace and to participate
in collaborative research and innovation. And Dr. I.T Group of
Institutes is working to prepare the next generation of marketing
experts, engineers, IT and other professionals, who will become the
innovators and leaders of the future. Apart from providing quality
education, they also focus on the comprehensive development of the
students.

Know more about Dr. I.T Group of Institutes by visiting their site:
http://www.dritimt.in/drit/default.aspx

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