सकारात्मक राजनीति अर्थव्यवस्था में कितना बड़ा बदलाव ला सकती है, इसकी मिसाल बन गया है बिहार। विगत 31 मार्च 2012 को समाप्त हुई 11 वीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) के दौरान प्रदेश की सकल राज्य घरेलू उत्पाद दर 21.9 फीसद दर्ज की गई। यह आकड़ा बिहार सरकार का नहीं, बल्कि आर्थिक मामलों के सर्वाधिक प्रमाणिक निकाय, यानी देश के उस योजना आयोग का है, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। विकास दर की इस सचाई को स्वीकार करने में किसी को संकोच नहीं होना चाहिए।
ये आकड़े जिस अवधि के हैं, उसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग सरकार की दोनों पारियों के वर्ष शामिल हैं, इसलिए इसका श्रेय भी वर्तमान सरकार को मिलता है। ये आकड़े साबित करते हैं कि विकास के जिस मुद्दे को राजनीति और शासन के केंद्र में रखा गया है, उस पर सरकार न केवल अडिग है, बल्कि उसका काम बेहतर नतीजे देने लगा है। आयोग की रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब राष्ट्रीय अर्थव्यस्था विकास दर बढ़ाने के लिए चिंतित नजर आ रही है। कह सकते हैं कि देश के स्तर पर जो आर्थिक मंदी महसूस की जा रही है, उससे बिहार को बाहर रखने में भी राज्य सरकार को सफलता मिली है। निश्चय ही यह खुश होने का मौका है, लेकिन यह भी तय है कि इसमें सबसे बड़ी भूमिका उस धन की है, जिसका निवेश विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से हुआ। इनमें ढाचागत विकास की योजनाएं खास मायने रखती हैं। बिहार से आकार में छोटे सिक्किम ने 31.6 फीसद तो गोवा ने 22.9 फीसद की विकास दर हासिल कर बड़ी दिखने वाली लकीर खींची है। यह तुलना उपयुक्त नहीं कही जा सकती, क्योंकि इसमें सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों की जटिलता का कोई संदर्भ नहीं लिया गया है। लगभग बराबर के प्रदेशों में महाराष्ट्र, आध्र प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की विकास दर से हमारा आगे निकलना एक उपलब्धि ही है। इस रफ्तार की जरूरत तब तक बनी रहेगी, जब तक हम विकसित राज्य बन नहीं जाते। विकास की दर अधिक होना और अधिक विकसित होना, दोनों में बड़ा फर्क है।
सर्वाधिक तेज विकास दर के बावजूद प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय कई राज्यों से कम है। यहा बिजली की प्रति व्यक्ति खपत भी बहुत कम है। खेती को लाभकर नहीं बनाया जा सका है। ये संकेतक बताते हैं कि उद्योग-व्यापार और कृषि जैसे कई प्रमुख सेक्टर में मंजिल का सफर कितना लंबा है। विकास की यह तेजी यदि बनी रही, तो हमारे लिए खुशहाली के दिन करीब होंगे।
[स्थानीय संपादकीय: बिहार]
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