Wednesday, April 4, 2012

अद्वितीय कथा शिल्पी थे निर्मल वर्मा

Apr 03, २०१२,   
 
जागरण हिंदी पत्रिका
मुजफ्फरपुर, काप्र : प्रसिद्ध कथाकार निर्मल वर्मा की जयंती पर साहित्यकार आनंद भैरव शाही ने कहा कि वे मात्र कथाकार ही नहीं, बल्कि एक अद्वितीय शैलीकार व यात्रा वृतांत लेखक भी थे। उनमें सुहृद पाठकों को मुग्ध कर देने की क्षमता भी थी। सांस्कृतिक संस्था जागृति के तत्वावधान में आइजी कॉलोनी में आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता श्री शाही ने यह भी कहा कि श्री वर्मा चेकोस्लोवाकिया में बिताए गए अपने लंबे प्रवास पर आधारित उपन्यास 'वे दिन' से लेकर 'अंतिम अरण्य', 'एक तीसरा सुख', 'लाल बिम की छत' आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं। यूरोप के विभिन्न देशों में भी उन्होंने भ्रमण किया। उनके विचार प्रगतिशील थे जो वर्तमान साहित्यकारों के लिए अनुसरणीय है।
 डॉ. हरिकिशोर प्रसाद सिंह ने कहा कि श्री वर्मा आधुनिक कथाकारों में एक मूर्धन्य कथाकार और पत्रकार थे। शिमला में जन्मे श्री वर्मा को मूर्तिदेवी पुरस्कार (1995), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1985) उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। परिंदे (1958) से प्रसिद्धि पाने वाले निर्मल वर्मा की कहानियां अभिव्यक्ति और शिल्प की दृष्टि से बेजोड़ समझी जाती हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह ने की। मौके पर डॉ. विश्वनाथ चौधरी, देवकी नंद सिंह, डॉ. शालिनी सिंह, अमरनाथ सिंह आदि ने भी अपने विचार रखे एवं श्री वर्मा को श्रद्धासुमन अर्पित किया।

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